हज़रत रुकन उद्दीन मुल्तानी सुह्रवर्दी
रहमतुह अल्लाह अलैहि
आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की विलादत बासआदत ९रमज़ान उल-मुबारक बरोज़ जमाता उल-मुबारक ६४९हिज्री में हुई। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि का इस्म गिरामी शेख़ रुकन उद्दीन रहमतुह अल्लाह अलैहि है। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की कुनिय्यत अब्बू अलिफ़ता और लक़ब फ़ज़ल अल्लाह है। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि के वालिद माजिद का नाम हज़रत-ए-शैख़ सदर उद्दीन आरिफ़ रहमतुह अल्लाह अलैहि है। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की वालिदा माजिदा का नाम बीबी रास्ती था जो अपने ज़हदोतक़वा की वजह से राबिया अस्र कहलाती थीं और क़ुरआन शरीफ़ की हाफ़िज़ा थीं। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि अपने वालिद और पीरोमुर्शिद शेख़ सदर उद्दीन आरिफ़ रहमतुह अल्लाह अलैहि के ख़लीफ़ा हैं।
आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने इबतिदाई और ज़ाहिरी तालीम अपने वालिद बुजु़र्गवार से हासिल की और बातिनी उलूम हज़रत बहा-उद-दीन ज़करीया रहमतुह अल्लाह अलैहि से हासिल किए। हज़रत सदर उद्दीन आरिफ़ रहमतुह अल्लाह अलैहि के बाद उन के जांनशीन बने। हज़रत जलाल उद्दीन जहानियां जहां गशत रहमतुह अल्लाह अलैहि अपने मलफ़ूज़ात में फ़रमाते हैं कि शेख़ रुकन उद्दीन रहमतुह अल्लाह अलैहि तहज्जुद के वक़्त से लेकर दोपहर तक रियाज़त-ओ-इबादत में मशग़ूल रहते थे। ३६साल की उम्र में जब अपने वालिद बुजु़र्गवार की मस्नद पर बैठे तो हर गोशा से लोग ख़िदमत में हाज़िर पोकर फ़ैज़याब हुए। जो भी साइल आता हाजत रवानी ज़रूर फ़रमाते। मजलिस में जिस के दिल में कोई बात आजाती तो आप रहमतुह अल्लाह अलैहि को कशफ़ के ज़रीये इस का इलम होजाता और आप रहमतुह अल्लाह अलैहि उस की दिलजोई फ़रमाते।
हज़रत निज़ाम उद्दीन औलिया रहमतुह अल्लाह अलैहि से आप रहमतुह अल्लाह अलैहि को बहुत मुहब्बत थी और ख़्वाजा निज़ाम उद्दीन रहमतुह अल्लाह अलैहि भी आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की बड़ी इज़्ज़त किया करते थे। जब आप रहमतुह अल्लाह अलैहि मुल्तान से दिल्ली गए तो सुलतान अलाओ उद्दीन खिलजी आप रहमतुह अल्लाह अलैहि के इस्तिक़बाल के लिए आया तो ख़्वाजा निज़ाम उद्दीन रहमतुह अल्लाह अलैहि भी आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की इज़्ज़त अफ़्ज़ाई के लिए तशरीफ़ लाए थे। अगरचे आप रहमतुह अल्लाह अलैहि सुलतान के हाँ मेहमान ठहरे थे मगर ज़्यादा वक़्त हज़रत निज़ाम उद्दीन औलिया रहमतुह अल्लाह अलैहि के साथ बसर किया करते थे। चुनांचे आप रहमतुह अल्लाह अलैहि फ़रमाते हैं कि में मुल्तान से दिल्ली सिर्फ़ ख़्वाजा निज़ाम उद्दीन औलिया रहमतुह अल्लाह अलैहि की ज़यारत के लिए गया था।
एक मर्तबा ग़ियास उद्दीन तुग़ल्लुक़ बंगाल की कामयाब मुहिम से वापिस आरहा था तो आप रहमतुह अल्लाह अलैहि भी इस के इस्तिक़बाल केलिए गए थे। रात को सुलतान के साथ आप रहमतुह अल्लाह अलैहि जिस जगह खाना खा रहे थे उस जगह के मुताल्लिक़ कशफ़ बातिन से आप रहमतुह अल्लाह अलैहि को मालूम होगया था कि उस की दीवार गिर जाये गी। चुनांचे आप रहमतुह अल्लाह अलैहि खाना छोड़कर बाहर चले आए और सुलतान से भी कहा कि बाहर आजाऐं मगर इस ने आने में देर करदी और दीवार गिर पड़ी और सुलतान इस के नीचे दब कर हलाक होगया।
मुल्तान में एक हिंदू औरत रहा करती थी। बेवा थी और सिवाए इकलौते लड़के के इस का दुनिया में कोई सहारा ना था। इस ने दुनिया जहान की मेहनत-ओ-मशक़्क़त उठाकर अपने बेटे की परवरिश की। जब वो जवान हुआ तो एक दिन तिजारत की ग़रज़ से ख़रासां के सफ़र पर ऐसा रवाना हुआ कि दुबारा मुल्तान की राह ही भूल गया। ना तो ख़ुद आया और ना ही अपनी ख़ैरीयत का कोई पता अपनी माँ को भेजा। वो अपने बेटे की याद में दिन भर रोती रहती और लोगों से कहती कि किसी तरीक़े से इस के बेटे को वापिस लादे। कुछ हमदरद लोगों ने ये देखा तो उसे हज़रत रुकन उद्दीन आलिम रहमतुह अल्लाह अलैहि के पास जाने का मश्वरा दिया। वो सीधी आप रहमतुह अल्लाह अलैहि के पास पहुंची और अपनी कहानी बयान की और कहने लगे किसी तरीक़े से मेरे बेटे को वापिस लादीं। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने रहम दिल्ली से उसे देखते हुए चंद लम्हों के लिए आँखें बंद कीं फिर कुछ देर बाद आँखें खोलीं और इस हिंदू औरत से कहा घर जाओ तुम्हारा बेटा अल्लाह की रज़ा से घर पहुंच चुका है। चुनांचे जब वो औरत घर पहुंची तो इस का बेटा घर मौजूद था।
आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की ख़ानक़ाह में एक सिंधी दरवेश दीनी हक़ की तालीम के लिए ठहरा हुआ था। यहां पर लंगर का इतना अज़ीमुश्शान इंतिज़ाम होता था और किसी किस्म की चीज़ की कोई कमी ना होती थी। ख़ानक़ाह में ठहरे हुए दरवेश हर किस्म की फ़िक्र से आज़ाद पूरी तनदही से ख़ुदा की इबादत में मशग़ूल रहते थे।
एक मर्तबा वही सिंधी दरवेश हज करने के लिए मक्का रवाना हुआ तो वहां पर गला की गिरानी देख कर सख़्त परेशान हुआ। उसे मक्का में सिर्फ़ एक रोटी खाने को मिलती थी जबकि शाह रुकन आलिम रहमतुह अल्लाह अलैहि की ख़ानक़ाह में चार चार खाने को मिल जाती थीं। इस सूरत-ए-हाल का ज़िक्र इस ने वहां ठहरे हुए एक और बुज़ुर्ग से किया तो इस बुज़ुर्ग ने कहा कि आप रहमतुह अल्लाह अलैहि के शेख़ हज़रत रुकन उद्दीन रहमतुह अल्लाह अलैहि हर जुमा की शब को यहां आते हैं। चुनांचे जुमा की शब को शेख़ हज़रत रुकन उद्दीन रहमतुह अल्लाह अलैहि तशरीफ़ लाएता आप से मिलने वालों में वो सिंधी दरवेश भी शामिल था।इस ने जब अपनी मुश्किल आप रहमतुह अल्लाह अलैहि से बयान की तो आप रहमतुह अल्लाह अलैहि हंस पड़े और फ़रमाया ।चार रोटियों के लिए इतनी परेशानी।ख़ैर से जाओ तुम्हें तुम्हारी ख़ाहिश के मुताबिक़ खाना मिलता रहेगा।फिर इस के कुछ देर बाद जब वो दरवेश अपने हुजरे में पहुंचा तो एक शख़्स मुख़्तलिफ़ अन्वा के खानों से भरा ख़वान लेकर आया और कहा कि ये शेख़ हज़रत रुकन उद्दीन रहमतुह अल्लाह अलैहि ने भेजे हैं। शेख़ हज़रत रुकन उद्दीन रहमतुह अल्लाह अलैहि के हुक्म से तुम्हें रोज़ाना खाना पहुंचता रहेगा।चुनांचे जितने दिन वो दरवेश वहां रहा उसे रोज़ाना खाना मिलता रहा।
आप की ग़िज़ा बहुत कम होती थी।दूध में कुछ मेवे डाल कर खा लिया करते थे।एक मर्तबा घर वालों ने एक हकीम से कहा कि शेख़ बहुत कम ग़िज़ा खाते हैं। हकीम साहिब ने आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की ग़िज़ा मंगवाई और इस में से चंद लुक़्मे खाए मगर गिरानी महसूस हुई कहने लगा अब सात दिन तक मुझे खाने की ज़रूरत महसूस ना होगी क्योंकि बुज़ुर्गों के खाने में कमीयत से ज़्यादा कैफ़ीयत होती है।
जब शेख़ हज़रत रुकन उद्दीन रहमतुह अल्लाह अलैहि का आख़िरी वक़्त क़रीब आया तो आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने इस क़बल तीन बार मख़लूक़ से गोशा गिरी की और बिलकुल हुजरा से बाहर तशरीफ़ ना लाए। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि सिर्फ़ फ़र्ज़ नमाज़ों की अदायगी के लिए बाहर तशरीफ़ लाते और फिर वापिस लूट जाते। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की ये कैफ़ीयत रहलत से पहले तीन माह तक ऐसी ही थी।
१६रजब एल्मर जब ७३४हिज्री को नमाज़ मग़रिब के बाद नमाज़ अवाबीन अदा फ़र्मा रहे थे कि सजदे की हालत में इस दार फ़ानी से रुख़स्त होगए। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि का मज़ार अक़्दस मुल्तान में है और इस का गनबद दुनिया के अजाइबात में शामिल है। उसे ग़ियास उद्दीन तुग़ल्लुक़ ने अपने ज़ाती ख़र्च से अपने लिए तामीर करवाया था लेकिन क्योंकि सुलतान की मौत दिल्ली में वाक़्य हुई थी इस लिए सुलतान को दिल्ली में दफ़न किया गया। सुलतान के जांनशीन मुहम्मद शाह तुग़ल्लुक़ ने जो शेख़ हज़रत रुकन उद्दीन रहमतुह अल्लाह अलैहि का मोतक़िद ख़ास था इस ने ये मक़बरा शेख़ हज़रत रुकन उद्दीन रहमतुह अल्लाह अलैहि को देदिया। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि उसे इबादतगाह के तौर पर इस्तिमाल फ़रमाते रहे।
आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने ज़िंदगी के आख़िरी लमहात में वसीयत फ़रमाई कि मुझे हज़रत बहा-उद-दीन ज़करीया रहमतुह अल्लाह अलैहि के क़दमों में दफ़न किया जाये क्योंकि आप रहमतुह अल्लाह अलैहि समझते थे कि शायद ये मक़बरा बैत-उल-माल से बनाया गया है। चुनांचे आप रहमतुह अल्लाह अलैहि को हज़रत बहा-उद-दीन ज़करीया रहमतुह अल्लाह अलैहि क़दमों में सपुर्द-ए-ख़ाक कर दिया गया बगर बाद में जब सुलतान फ़िरोज़ शाह तुग़ल्लुक़ दिल्ली से मुल्तान आया तो इस ने सज्जादा नशीन के यक़ीन दिलाया कि इस मक़बरा की तामीर बैत-उल-माल से नहीं हुई बल्कि ग़ियास उद्दीन तुग़ल्लुक़ ने अपनी ज़ाती आमदनी से जबकि वो दीपाल पर के गवर्नर थे तामीर किराया था।
क्योंकि शेख़ हज़रत रुकन उद्दीन रहमतुह अल्लाह अलैहि का कोई बेटा ना था इस लिए आप रहमतुह अल्लाह अलैहि के बाद आप रहमतुह अल्लाह अलैहि के भाई मुहम्मद इस्माईल के साहबज़ादे सज्जादा नशीन हुए। चुनांचे सब लोगों ने मिल कर इस बात का फ़ैसला किया कि आप रहमतुह अल्लाह अलैहि के जसद-ए-ख़ाकी को इस मक़बरा में मुंतक़िल कर दिया जाये। सुलतान फ़िरोज़ शाह तुग़ल्लुक़ ने हज़रत के ताबूत ख़ुद कंधा देकर इस मक़बरा में मुंतक़िल किया। उस वक़्त हज़ारों की तादाद में मर यदैन और अवाम मौजूद थे।